- 42 दिन शिशु के लिए बहुत महत्वपूर्ण
- नवजात की समुचित देखभाल एवं निगरानी के लिए चलाया जा रहा एचबीएनसी कार्यक्रम
- नवजात की मृत्यु के प्रमुख कारणों में से 35 % समय से पूर्व प्रसव, 33 % संक्रमण और 20 % प्रसव के समय दम घुटना
रायबरेली, रविवार 06नवम्बर 2022 (सूवि) कार्तिक मास शुक्ल पक्ष त्रयोदशी, हेमन्त ऋतु २०७९ राक्षस नाम संवत्सर। नवजात शिशु सुरक्षा को लेकर सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयास रंग ला रहे हैं। इसकी झलक राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-5) वर्ष 2019-21 के आंकड़ों से स्पष्ट देखी जा सकती है।
एनएफएचएस-5 के अनुसार प्रदेश की नवजात मृत्यु दर 35.7 है जबकि एनएफएचएस-4 (2015-16) के अनुसार यह आंकड़ा 45.1 था।
इस संबंध में मुख्य चिकित्सा अधिकारी डा. वीरेन्द्र सिंह बताते हैं कि नवजात की मृत्यु के प्रमुख कारणों में से 35 % समय से पूर्व प्रसव हैं, 33 % संक्रमण की वजह से, 20 % प्रसव के समय दम घुटना (बर्थ एसफिक्सिया) की वजह से, और नौ % जन्मजात विकृतियाँ की वजह से होती हैं। डा. वीरेन्द्र सिंह बताते हैं कि नवजात शिशु में खतरों के लक्षण की पहचान कर समय से चिकित्सीय जांच और इलाज कराकर किसी भी अनहोनी से बचा जा सकता है। जीवन के पहले छह सप्ताह अर्थात 42 दिन शिशु के लिए बहुत महत्वपूर्ण होते है और इस दौरान उनको देखभाल और समुचित निगरानी की बहुत जरूरत होती है। इन्हीं को ध्यान में रखकर राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन द्वारा गृह आधारित नवजात देखभाल (एचबीएनसी) कार्यक्रम चलाया जा रहा है। जिसके तहत आशा कार्यकर्ता बच्चे के जन्म के बाद 42 दिन के भीतर छह/सात बार भ्रमण करती हैं। आशा कायकर्ता के पास एचबीएनसी किट होती है। जिसमे वजन मशीन, डिजिटल थर्मामीटर और डिजिटल घड़ी और कंबल सहित कुछ दवाएं भी होती हैं।
एचबीएनसी कार्यक्रम का उद्देश्य सभी नवजात को अनिवार्य नवजात शिशु देखभाल सुविधायेँ उपलब्ध कराना, समय पूर्व पैदा होने वाले और जन्म के समय कम वजन वाले बच्चों की शीघ्र पहचान कर उनकी देखभाल करना, नवजात शिशु की बीमारी का शीघ्र पता कर समुचित देखभाल एवं रेफ़र करना, परिवार को आदर्श व्यवहार अपनाने के लिए प्रेरित एवं सहयोग करना तथा माँ के अंदर अपने नवजात शिशु के स्वास्थ्य की सुरक्षा करने का आत्मविश्वास एवं दक्षता का विकास करना है।
जिला स्वास्थ्य शिक्षा एवं सूचना अधिकारी डी एस अस्थाना ने बताया कि प्रसव के बाद महिला को चिकित्सक की सलाह पर अस्पताल में 48 घंटे तक अवश्य रहना चाहिए ताकि प्रसूता और नवजात की समुचित जांच और इलाज हो सके। साथ ही नवजात का टीकाकरण भी अवश्य कराना चाहिए। इसके साथ ही जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम के तहत बीमार नवजात को निःशुल्क इलाज की सुविधा उपलब्ध है। इस कार्यक्रम के अंतर्गत नवजात को उपचार (औषधि एवं कंज्यूमेबल्स), आवश्यक निदान, रक्त का प्रावधान, एम्बुलेंस की सुविधा, उच्च स्तरीय स्वास्थ्य केंद्र पर सन्दर्भन की स्थिति में, स्वास्थ्य केंद्र से उच्च स्तरीय स्वास्थ्य केंद्र तक जाने तथा वापिस घर तक आने के लिए निःशुल्क परिवहन सुविधा सरकार द्वारा दी गई है।
रेखा यादव आशा कार्यकर्ता गोविंदपुर डीह बताती हैं कि एचबीएनसी कार्यक्रम के तहत संस्थागत प्रसव के मामले में तीसरे, 7वें, 14वें, 21वें, 28 वें और 42 वें दिन तथा घर में जन्म के मामले में उपरोक्त छह दिन के साथ पहले दिन भी बच्चे के घर का भ्रमण करते हैं। इस दौरान बच्चे का वजन, बुखार, शरीर में दाने, शरीर में ऐंठन, झटके या दौरे आना, ठंडा बुखार या हाइपोथर्मिया, सुस्त रहना, सांस तेज या धीरे चलना, बच्चा दूध ठीक से पी रहा है या नहीं, जन्मजात विकृति आदि के बारे में जांच करते हैं और आवश्यकता पड़ने पर उसे स्वास्थ्य केंद्र लेकर जाते हैं। साथ ही इन खतरे के लक्षणों के बारे में माँ और परिवार के सदस्यों को भी बताते है ताकि वह भी खतरे के लक्षणों को पहचान सकें उन्हें अंदेखा न करें।आपातकालीन परिस्थितियों में आशा कार्यकर्ता या स्वास्थ्य केंद्र पर संपर्क करें। इसके अलावा परिवार के सदस्यों को हाथ धोने के सही विधि के बारे में भी बताते हैं क्योंकि गंदे हाथों से नवजात को छूने और स्तनपान कराने से वह बीमार हो सकता है।
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