लखनऊ, बुधवार 07जुलाई 2021 (सूवि) अषाढ़ मास कृष्ण पक्ष त्रयोदशी वर्षा ऋतु २०७८ आनन्द नाम संवत्सर। उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘भारतेन्दु युगीन निबन्ध साहित्य में स्वातंत्र्य चेतना विषय पर संगोष्ठी का आयोजन आज अपराह्न 3.00 बजे से गूगल मीट के माध्यम से किया गया। डॉ0 सदानन्दप्रसाद गुप्त, कार्यकारी अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान की अध्यक्षता में आयोजित ऑनलाइन संगोष्ठी में मुख्यअतिथि के रूप में डॉ0 सूर्य प्रसाद दीक्षित, एवं डॉ0 आनन्द सिंह, भोपाल उपस्थिति थे।
इस अवसर पर श्रीकांत मिश्रा, निदेशक, उ0प्र0हिन्दी संस्थान ने कहा कि उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा साहित्यिक समारोह योजना के अन्तर्गत प्रत्येक माह एक या दो कार्यक्रम आयोजित किये जाने की परम्परा है। वित्तीय वर्ष 2021-22 के प्रारम्भ से ही कोराना महामारी का प्रकोप बढ़ने के कारण हम कार्यक्रमों के आयोजन से वंचित रहें। इस बीच इस त्रासदी से अनेक साहित्यकार बन्धु यथाआदरणीय नरेन्द्र कोहली, डॉ0 कुँवर बेचैन, डॉ0 शान्ति जैन, डॉ0 योगेश प्रवीन, डॉ0 लाल बहादुर सिंह, श्री वाहिद अली ‘वाहिद‘, श्री साधुशरण वर्मा आदि हमसे सदा के लिए बिछुड़ गये। हम उन सभी के पावन स्मृति को नमन करते हुए उनके द्वारा किये गये महत्वपूर्ण साहित्यिक योगदान का सदैव स्मरण करेंगे।
उन्होने कहा कि कोरोना की भयावहता को ध्यान में रखते हुए ऑनलाइन संगोष्ठी का आयोजित की जा रही है। ‘भारतेन्दु युगीन निबन्ध साहित्य में स्वातंत्र्य चेतना‘ विषय पर आयोजित इस ऑनलाइन संगोष्ठी में सम्मानीय अतिथि के रूप में सम्मिलित डॉ0 सूर्य प्रसाद दीक्षित जी एवं डॉ0 आनन्द कुमार सिंह जी का स्वागत करते हुए उन्होनें कहा कि इस संगोष्ठी में सबका ज्ञानवर्द्धन होगा। विशेषकर साहित्य के शोधार्थी विद्यार्थी इससे लाभान्वित होंगे।उन्होनें अवगत कराया कि दिनांक 23 जुलाई, 2021 को अपराह्न 3.00 बजे से ‘महाराणा प्रताप और हिन्दी साहित्य‘ विषय पर ऑनलाइन संगोष्ठी का पुनः आयोजन होगा।
सम्माननीय अतिथि के रूप डॉ0 आनन्द कुमार सिंह, भोपाल, ने अपने सम्बोधन में कहा कि कोई भी नवजागरण शून्य में नहीं हो सकता उसके पीछे कुछ न कुछ ठोस कारण भी होते हैं। अंग्रेजों के आने के बाद समाज में नये वर्ग यानि ‘मध्य वर्ग‘ का अभ्युदय और विकास हुआ। भारतीय समाज की अधिकांश बुराइयाँ इसी काल में प्रारम्भ हुई। भारतेन्दु मण्डल के लेखकों ने इन सभी परिस्थितियों का चित्रण अपने साहित्य में किया। बालकृष्ण भट्ट को आधुनिक हिन्दी निबन्ध का जनक भी कहा जाता है। स्वतंत्रता का बोध केवल आजादी का बोध नहीं है।
अपने पूर्वजों के स्मरण के द्वारा वैचारिक स्वतंत्रता का बोध भी बाल कृष्ण भट्ट के निबन्धों में देखा जा सकता है। वे ‘शंकराचार्य‘ निबन्ध में अद्वैतवादी मत से अपनी सहमति व्यक्त करते हैं तो गुरुनानक देव पर लिखे अपने निबन्ध में सामाजिक स्थितियों का आकलन करते हैं।नवजागरण का परम मंत्र भारतेन्दु युगीन साहित्यकार बालकृष्ण भट्ट के निबन्धों में दिखायी देती है। ‘हमारा दास्य भाव‘ निबन्ध में वे पाठकों को चौंका देते हैं। वे दास्य भक्ति का विरोध करते हैं।मुख्य अतिथि के रूप में डॉ0 सूर्य प्रसाद दीक्षित ने कहा कि यदि गद्य काव्य की कसौटी है तो निबन्ध गद्य की कसौटी है। यह कहा जाता है, वास्तव में निबन्ध गद्य की मूल विधा है। भारतेन्दु युग को गद्य खड़ी बोली और आधुनिकता का आर्विभाव कहा जाता है। भारतेन्दु युग में लगभग सभी रचनाकारों ने निबन्ध अवश्य लिखे। भारतेन्दु युग अपने समय के प्रति सचेत है। इस युग में अधिकांश साहित्यकार, पत्रकार थे इसलिए वे अनेक प्रकार के निबन्ध लिख रहे थे। इस युग के लेखक जन समाज से जुड़े हुए लेखक थे, इसलिए अपनी अत्यन्त रोचक शैली के कारण लोकप्रिय हो जाते थे। इस युग के निबन्धकार अपने अतीत को जगाना चाहते हैं। भारतीयों का लुप्तप्राय गौरव और समाज की समस्याओं को अपना लक्ष्य बनाते हैं इस युग के निबन्धों में कहीं कहीं गाम्भीर्य चिन्तन क्रान्तिकारी विचार और मनोवैज्ञानिक विश्लेषण भी दिखायी देता है। भारतेन्दु जी ने जितने भी निबन्ध लिखे हैं उनमें वैविध्य देखने को मिलता है। हास्य व्यंग्य में भारतेन्दु जी ने स्त्रोत परक निबन्धों की रचनाएँ है।
अध्यक्षीय सम्बोधन में डॉ0 सदानन्दप्रसाद गुप्त, कार्यकारी अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान ने कहा कि आज इस संगोष्ठी में भारतेन्दु युग के निबन्धों तथ्य कथ्य पर विस्तार से चर्चा हुई। यहाँ आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जिन्होंने आधुनिकता की विशेषताएँ बतायी हैं उनका स्मरण भी हमें करना चाहिए। वे कहते हैं कोई भी आधुनिक विचार हवा मंें पैदा नहीं होती उसकी जड़े परम्परा में होती हैं। वे कहते हैं परम्परा आधुनिकता को आधार देती है। भारतेन्दु युगीन साहित्य में परम्परा और आधुनिकता का दुर्लभ सामंजस्य देखने को मिलता है। क्रांतिकारी चेतना भारतेन्दुकालीन निबन्धों में देखने को मिलती है। जिस कलि संवत् में हमारा इतिहास और साहित्य लिखा जा रहा था, उस ओर भारतेन्दु जी संकेत कर रहे थे। पहचान के संकट को दूर करने का प्रयास भारतेन्दु और उनके काल के निबन्धकारों ने किया है। निबन्धकारों ने व्यंग्यात्मक शैली में शासन सत्ता के शोषण का चित्रण किया। भारतेन्दु कालीन निबन्धों में क्रांतिकारी चेतना देखने को मिलती है।
डॉ0 अमिता दुबे, सम्पादक, उ0प्र0 हिन्दी संस्थान ने कार्यक्रम का संचालन किया। इस संगोष्ठी में दीपक कोेहली, डॉ0 निरूपमा अशोक, जी0एस0तिवारी, डॉ0 मंजु त्रिपाठी, डॉ0 अनुराधा तिवारी, डॉ0 हरिशंकर मिश्र, डॉ0 पवन अग्रवाल, डॉ0 ऊषा चौधरी, डॉ0 उषा सिन्हा, डॉ0 दिनेश पाठक ‘शशि‘ सहित अनेक साहित्यकारों ने ऑनलाइन प्रतिभाग किया।
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