वास्तव में ये सारे दिवस भगवान् शंकर से ही प्रकट माने जाते हैं, शिव-महापुराण के अनुसार प्राणियों की आयु का निर्धारण करने के लिये भगवान् शिवशंकर ने काल की कल्पना की।
ब्रह्माजी से लेकर अत्यन्त छोटे जीवों तक की आयुष्य का अनुमान लगाया गया, उस काल को ही व्यवस्थित करने के लिये महाकाल ने सप्तवारों की कल्पना की, सबसे पहले ज्योतिस्वरूप सूर्य के रूप में प्रकट होकर आरोग्य के लिए प्रथमवार की कल्पना की, पुराणों के अनुसार सोम का अर्थ चंद्रमा होता है और चंद्रमा भगवान् शंकर के शीश पर मुकुटायमान होकर अत्यन्त सुशोभित होता है।
संसारवैद्य: सर्वज्ञ: सर्वभेषजभेषजम्।
आय्वारोग्यदं वारं स्ववारं कृतवान्प्रभु:।।
अपनी सर्वसौभाग्यदात्री शक्ति के लिए द्वितीयवार की कल्पना की, उसके बाद अपने ज्येष्ठ पुत्र कुमार के लिए अत्यन्त सुन्दर तृतीयवार की कल्पना की, तदनन्तर सर्वलोकों की रक्षा का भार वहन करने वाले मुरारी के लिए चतुर्थवार की कल्पना की, देवगुरु के नाम से पञ्चमवार की कल्पना कर उसका स्वामी यम को बना दिया।
असुरगुरु के नाम से छठे वार की कल्पना करके उसका स्वामी ब्रह्मा को बना दिया एवं सप्तमवार की कल्पना कर उसका स्वामी इंद्र को बना दिया, नक्षत्र चक्र में सात मूल ग्रह ही दृष्टिगोचर होते हैं, इसलिए भगवान् ने सूर्य से लेकर शनि तक के लिए सातवारों की कल्पना की, राहु और केतु छाया ग्रह होने के कारण दृष्टिगत न होने से उनके वार की कल्पना नहीं की गई।
आरोग्यंसंपद चैव व्याधीनांशांतिरेव च।
पुष्टिरायुस्तथाभोगोमृतेर्हानिर्यथाक्रमम्।।
स्वास्थ्य, संपत्ति, रोग-नाश, पुष्टि, आयु, भोग तथा मृत्यु की हानि के लिए रविवार से लेकर शनिवार तक भगवान् श॔कर की आराधना करनी चाहिए, सभी वारों में जब शिव फलप्रद हैं तो फिर सोमवार का आग्रह क्यों? ऐसा लगता है की मनुष्य मात्र को सम्पत्ति से अत्यधिक प्रेम होता है, इसलिए उसने शिव के लिए सोमवार का चयन किया।
लगता है कि भगवान् शंकर ने जैसे कुटिल, कलंकी, कामी, वक्री एवं क्षीण चंद्रमा को उसके अपराधी होते हुए भी क्षमा कर अपने शीश पर स्थान दिया वैसे ही भगवान् हमें भी सिर पर नहीं तो चरणों में जगह अवश्य देंगे, यह याद दिलाने के लिए सोमवार को ही लोगों ने शिवजी का वार बना दिया, अथवा सोम का अर्थ सौम्य होता है, भगवान् शंकर अत्यन्त शांत समाधिस्थ देवता हैं।
इस सौम्य भाव को देखकर ही भक्तों ने इन्हें सोमवार का देवता मान लिया, सहजता और सरलता के कारण ही इन्हें भोलेनाथ कहा जाता है, अथवा सोम का अर्थ होता है उमा के सहित शिव, केवल कल्याणरी शिव की उपासना न करके साधक भगवती शक्ति की भी साथ में उपासना करना चाहता है क्योंकि बिना शक्ति के शिव के रहस्य को समझना अत्यन्त कठिन है, इसिलिये भक्तों ने सोमवार को शिव का वार स्वीकृत किया।
अथवा सोम में ओऊम् समाया हुआ है, भगवान् शंकर ओऊम् कार स्वरूप हैं, ओऊम् कार की उपासना के द्वारा हीं साधक अद्वय स्थिति में पहुँच सकता है, इसलिये इस अर्थ के विचार के लिए भगवान् सदाशिव को सोमवार का देव कहा जाता है, अथवा वेदों ने सोम का जहाँ अर्थ किया है वहाँ सोमवल्ली का ग्रहण किया जाता है।
सज्जनों, जैसे सोमवल्ली में सोमरस आरोग्य और आयुष्यवर्धक है, वैसे ही शिवजी हमारे लिए कल्याणकारी हों, इसलिये सोमवार को महादेव की उपासना की जाती है, सोम का अर्थ चंद्रमा है और चंद्रमा मन का प्रतीक है, जड़ मन को चेतनता से प्रकाशित करने वाला परमेश्वर ही है, मन की चेतनता को पकड़कर हम परमात्मा तक पहुँच सकें, इसलिये देवाधिदेव भूतभावन परमेश्वर श्री महादेव शंभू की उपासना सोमवार को की जाती है।
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