देवोत्थान एकादशी

 देवोत्थान एकादशी को देवउठान एकादशी, प्रबोधिनी एकादशी  भी कहा जाता है 


         आषाढ़, शुक्ल पक्ष की एकादशी की तिथि को देव
 शयन करते हैं और कार्तिक, शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन उठते हैं ! इसीलिए इसे देवोत्थान (देव-उठनी) एकादशी कहा जाता है ! माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु, जो क्षीरसागर में सोए हुए थे, चार माह उपरान्त जागे थे ! विष्णु जी के शयन काल के चार मासों में विवाह व अन्य मांगलिक कार्यों का आयोजन करना निषेध है ! भगवान विष्णु के
 जागने के बाद ही अर्थात् देवोत्थान एकादशी से शुभ तथा मांगलिक कार्य प्रारम्भ किए जाते हैं !                     एकादशी के दिन सुबह भगवान विष्णु व देवताओं का पूजन करने के बाद शंख- घंटा घड़ियाल बजाकर पारंपरिक आरती और कीर्तन के साथ गाना गा कर  (उठो देवा, बैठो देवा, अंगुरिया चटकाओं देवा ) देवताओं को जगाने, उन्हें अंगुरिया चटखाने और अंगड़ाई ले कर जाग उठने का आह्रान किया जाता है ! चार महीने तक देवताओं के सोने और कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी पर उनको जागना  प्रतीकात्मक है !   जोकि वर्षा के दिनों में सूर्य की स्थिति और ऋतु के प्रभाव से अपना सामंजस्य बिठाने का संदेश देता है ! सूर्य सबसे बड़े साक्षात् देवता हैं ,उन्हें जगत की आत्मा भी कहा गया है ! वर्षा काल में अधिकांश समय सूर्य देवता बादलों में छिपे रहते हैं ! इसलिए माना जाता है कि वर्षा के चार महीनों में भगवान सो जाते हैं ! फिर जब वर्षा काल समाप्त हो जाता है तो वे जाग उठते हैं ऐसा मानना सूर्य या विष्णु के सो जाने और उस अवधि में आहार विहार के मामले में ख़ास सावधानी रखने तक ही सीमित नहीं है ! इस का उद्देश्य वर्षा के दिनों में होने वाले प्रकृति परिवर्तनों, उनके कारण  फैलने वाली मौसमी बीमारियों और शरीर की प्रतिरोधक क्षमता पर पड़ने वाले प्रभाव , निजी जीवन में स्वास्थ्य संतुलन  बनाये रखना है ! 


            एक समय भगवान नारायण से लक्ष्मी जी ने कहा- 'हे नाथ ! आप दिन-रात जागा करते हैं और सोते हैं तो लाखों-करोड़ों वर्ष तक सो जाते हैं साथ ही समस्त चराचर जगत का नाश भी कर देते हैं ! आप नियम से प्रतिवर्ष निद्रा लिया करें ! इससे मुझे भी कुछ समय विश्राम करने का समय मिल जाएगा ! लक्ष्मी जी की बात सुनकर नारायण मुस्काराए और बोले- 'देवी'!  आपने उचित कहा , मेरे जागने से सभी देवों और आपको कष्ट होता है ! आपको मेरी सेवा से अवकाश नहीं मिलता ! इसलिए आपकी इच्छानुसार मैं प्रति वर्ष चार मास वर्षा ऋतु में शयन किया करूंगा ! उस समय आपको और देवगणों को अवकाश होगा ! मेरी यह निद्रा, अल्पनिद्रा कहलाएगी ! मेरी अल्पनिद्रा मेरे भक्तों के लिये परम मंगलकारी तथा पुण्यदायी होगी। इस काल में मेरे जो भी भक्त मेरी सेवा करेंगे तथा शयन और उत्थान (उठाने) के उत्सव आनन्दपूर्वक आयोजित करेंगे उनके घर में मैं आपके साथ निवास करूँगा !


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